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सिक्के की व्यथा

मेरी बात
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वैसे मेरे खनकने की आवाज़ से तो,आप सभी ने मुझे पहचान ही लिया होगा कि मैं कौन हूँ ? जी हाँ आपका छोटा सा, नन्हा सा, सिकका।
जिसे आप सभी बहुत प्यार करते हो और बहुत सम्भाल कर रखते हो। है ना… और फिर रखोगे क़यूँ नही ? मै आप सभी की ईतनी मद्द जो करता हूँ । पता है हमारे बडे बुजुर्गो जैसे हज़ारी नोट बाबा, पांचसौ के नोट चाचा, सौ, दस आदि नोट के भैया लोगो का तो बैको मे भी आना जाना लगा रहता है।
खैर छोड़ो इन सब बातो को , वो क्या है ना मुझे एक जरूरी बात करनी है आप सभी से । कई दिनो से ये बात मेरे कानो में आ रही है कि सिक्के बाज़ार से गायब हो रहे है। बात तो आश्चर्यजनक है। कि आखिर ये सिक्के जा कहाँ रहे हैं ? इन्हे जमीन निगल रही है या आसमन खा रहा है या फिर इन सिक्को को भी कोई अगवा कर रहा है? और जब से मैंने ये बात सुनि है , तब से मेरे दिमाग मे यही बात चल रही है कि आखिर ये मेरे यार- दोस्त, नात – रिश्तेदार गायब कहाँ हो रहे है।
बहुत खोजबिन और विचार करने के बाद मुझे पता चला कि इन सिक्को के गायब होने के पीछे इंसानो का हाथ है। और इस बात का पुरा सबुत है मेरे पास । मैंने बहुत से इंसानो के यहाँ देखा कि वे लोग सिक्को को एक कैद खाने ( जिसे इंसानी भाषा में गुल्लक कहते है) मे कैद कर के रखते है। और तो और सिक्को को कैद करने के पीछे सफाई क्या देते है, कि हम इन सिक्को को भविष्य के लिये बचा कर रखते है। इस बात पे अगर मै इंसानो से ये कहु कि अपने सगे- सम्बंधियो को भी किसी कैद्खने मे डाल कर रक्खो ताकि वे और उनका भविष्य दोनो सुरक्षित रहे । तो उन्हे कैसा लगेगा ?
अरे कई इंसान त्तो ऐसे देखे है, जो हम सिक्को को नदियो मे फेक देते है। और यहाँ भी ये इंसान सफाई देते हुए कहते है, कि ऐसा कर के हम गंगा मैया या नदियो का कर्ज़ उतारते है। अब भला ऐसे भी कोइ कर्ज़ उतारता है क्या? भला इन इंसानो को कौन समझाये कि, हम सिक्को को गंगा मे या फिर नदियो मे फेकने से नदियो का कर्ज़ नहि उतरता बल्कि उनमे कचडा होता है। जिसके परिणाम स्वरूप नदियो मे प्रदुशण और बाज़ार मे सिक्को कि कमी होने लगती है । जिसके वजह से नदियो का प्रवाह कम होता है और इंसानो को भी छुट्टे की परेशानियो का सामना करना पड़्ता है ।
पर हम सिक्को कि परेशानी यही खत्म नही होती। आज किसी एक अखबार मे खबर आयी थी कि,कोई इंसान दो बड़े-बड़े बोरियो मे सिक्को को भर कर कही ले जा रहा था। और शायद पुलिस के डर से गोरखपुर बस स्टैंड पर छोड कर भाग गया। पुलिस ने खोजबीन की तो पता चला कि इन सिक्को को किसी ब्लेड बनाने वाली कम्पनी तक ले जाया जा रहा था।और वहॉ हमारे रिश्तेदारो की हत्या कर उनसे ब्लेड बनाया जाता है । बहुत दुख होता है मुझे ये सब सुन कर, लेकिन क्या करे किससे कहे ? अब इंसानो के अंदर इंसानियत, ईमांदारी, वफदारी सब खत्म हो गई है। ईनके मन मे खोट हो गया है और ये इंसान हम सिक्को को खोटा कह्ते है।
आज मै इंसानो से एक सवाल पुछ्ना चाहता हू, कि क्या सोच कर इंसानो ने हम सिक्को पर ये कहावत बनाइ कि जब अपना ही सिक्का खोटा निकला तो दोष किसको दे ?
एक बात कहु तुम इंसानो से ? खोटे सिक्के नही इंसान होते है । आये दिन किसी ना किसी अखबार मे या न्युज़ चैनल पर तुम इंसानो के खोटे कर्तुतो की कहाँनियॉ आती रहती है।
अब चाहे नोएडा के यादव सिंह हो या स्विस बैंक मे आरबो रुपयो को ब्लैक तरीके से रखने वाले लोग्। सब के सब खोटे ही तो है । अब तुम लोग ही बताओ खोटे सिक्के होते है या इंसान ?
और यदि कोइ सिक्का खोटा भी निकला तो, इसमे तुम इंसानो का ही हाथ होता है। खुद के मन मे तो खोट होता ही है दुसरो के मन मे भी खोट पैदा कर देते हो तुम इंसान।
अब मुझे पुरा विश्वास हो गया है कि यदि हम सिक्को को या नोटो को किसी से खतरा है तो वो तुम इंसान ही हो। यदि तुम इंसान ईमांदार हो जाओ तो हमे दुनियॉ मे किसी से कोई खतरा नही है। लेकिन ये सम्भव नही है क्योंकि इंसान अपनी इंसानियत तो छोड़ सकता है पर ईमांदारी और वफादारी के राश्ते पर नही चल सकता।
और एक बात कहना है तुम इंसानो से कि अब कभी ये मत कहना कि अपना ही सिक्का खोटा निकला तो दोष किसको दे ? अरे दोष ही देना है तो खुद को दो क्योंकि दोष दुसरो का नहीं तुम्हारा है, खोट दुसरो मे नही तुम मे है। इंसान हो इंसानियत के राश्ते पर चलो और वफादारी और ईमांदारी से अपना कार्य करो। हम सिक्को को सिक्का ही रहने दो खोटा मत बनाओ।

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