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टुट्ता नन्हा तारा

मेरी बात
मेरी बात
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आसमॉ के उपर एक जहाँ था मेरा ।
लाखो के बीच था मै, एक नन्हा सा तारा ।
एक रात अंधेरी छाओ मे, ले रौश्नी अपनी बाहो मे।
मै घुम रहा था अंतरिक्ष मे, साथी तारो के संघ मे ।
आ लड़ा एक तारा ज़ोर से , मेरे आगे के छोर से ।
इस बड़े ज़ोर क झट्के से, मै गिरा टूट कर उपर से।
मै देख रहा था उपर को, मेरे साथी सब तारो को ।
छोड़ अपनी चम्कीली दुनियॉ को, चल पड़ा अंजानी दुनियॉ को ।
थे आगे अंधेरे रास्ते, ना कोई था अब साथ मेरे।
मै डर रहा था, चल रहा था, अंजाने अड़्चनो से लड़ रहा था ।
एक अंजानी सी दुनियॉ मे , मै खुले हाथ अब गिर रहा था ।
थी रौश्नी कुछ यहॉ अलग, टिम-टीमाते तारे अलग ।
बच्चो की थी झुंड अलग, एक बच्चा था इनसे अलग ।
वह देख रहा था उपर को, शायद उपर के तारो को ।
फिर देख मुझे वह गिरता यूँ , जाने क्युँ मूँद ली ऑखो को ।
कुछ मॉग रहा था खुदा से, नन्हे हाथो मे कुछ दुवा से ।
यह देख मेरा मन खुश हुआ , मेरा गिरना अब सफल हुआ ।
अपनो से दूर इस दुनियॉ मे, मै गिर कर के भी अमर हुआ ।

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