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मजहब नही है फूलो का

मेरी बात
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मज़हब नही है फूलो का, नाहि बैर है किसी धर्म से ।
ये तो चढ़ता है हर मंदिरो में, सजदे भी करता है दर्गाहो पर ।
खिलता है गुलाब कांटो के बीच, कीचड़ मे कमल मुस्काता है ।
देखो इस फूल गुलाब को, ये तो प्यार का संदेश पहुँचाता है ।
कुछ सीखे हम इंसान सभी, इन फूलो, बाग, बगीचो से ।
नफरत की ना हो जगह कही , एक ऐसा सुंदर संसार बसे ।
मिल-झुल के मनाये त्योहार सभी, सुख-दु:ख और बांटे खुशियो को ।
आओ मिलकर हम साथ चले, एक नये भारत के उदय को ॥॥॥॥॥

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