मेरी बात
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कबतक हैवानों के पंजे यूं ही नोचते रहेंगे किसी की आबरू?
कबतक सरेआम भोंका जाएगा किसी अबला के पेट में चाकू?
कबतक सहमे-सहमें बढ़ेंगे राजधानी में बेटियों के कदम?
कबतक गुनाहों के सामने एक दूसरे को निहारते रहेंगे आप और हम?
इस लाखों के भीड़ में भी अकेली कबतक लड़ती रहेगी नारी?
क्यों चुप बैठे रहते हो देखकर मेट्रो में किसी की आवारगी?
कबतक संभलेगी दिल्ली और कब दिखाएंगे यहां के लोग दरियादिली?
आखिर कबतक हाथ में मोमबत्ती लिए देते रहोगे किसी को श्रद्धांजली?
कबतक दिलवालों की दिल्ली झेलती रहेगी दरिंदगी………
आखिर कबतक????????????
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