Menu
blogid : 15237 postid : 1308717

सुनो भाग्यवान! एक और कुर्ताधारी मेहमान आए हैं….

मेरी बात
मेरी बात
  • 38 Posts
  • 15 Comments

election

हमेशा की तरह गांव के उस पगडंडी पर लोग आ-जा रहे थें। किसी के सिर पर गोबर की खांची थी, तो किसी के हाथ में पानी का लोटा। कोई  रास्ते में रुक कर दो-चार बातें कर रहा था, तो कोई पेंड़ पर चढ़  दातुन का जुगाड़ लगा रहा था। इसी बीच किसी ने कहा….सुनों तुम गरीब हो ! ….इतना सुनते ही राह चलते लगभग सभी लोग वहीं रुक गए और जिधर से ये आवाज़ आई थी उधर मुड़कर देखने लगे। थोड़ी दूर पर ही एक बाबू साहब सफेद चमचमाता कुर्ता-पजामा चढ़ाए इन्हीं लोगों की तरफ आ रहे थें। दुधिया रोशनी से कुर्ते में आ रहे बाबू साहब को अपनी तरफ आता देख एक बारगी तो लोग अचज में पड़ गए कि वो भला हमें काहें बुलाएंगे? कुर्ताधारी बाबू के कदम तेजी से इन लोगों की तरफ बढ़ रहे थें साथ ही उन लोगों को रुकने का इशारा भी कर रहे थें।

अब गांव के लोग तो सीधे-साधे होते हैं, मदद करने में उनके हाथ फटाक से आगे बढ़ जाते हैं। वो बात अलग है कि भले ही अमुक व्यक्ति की मदद करने की उनकी क्षमता ना हो लेकिन वो मदद के लिए आगे जरुर बढ़ जाते हैं। जब कुर्ताधारी बाबू ने उन्हे रुकने का इशारा किया तो लोगों को लगा कि शायद बाबू साहब कोई रास्त भटक गए हों और उन्हें रास्ता वगैरा पूछना हो। थोड़ी देर में बाबू साहब उनके समीप आ गए, आते ही लोगों के कदमों पर ऐसे गिरे जैसे बरसो बाद शहर से कमा कर उनका बेटा घर वापस आया हो। बाबू साहब के इस हरकत से तो लोग बिल्कुल ही सकते में आ गए, उन्हें ये समझ में ही नहीं आ रहा था कि भइया ये हैं कौन? और आते ही ऐसे  धड़ाम से कदमों पर काहें गिर गए?

खैर थोड़ी देर बाद में ही बाबू साहब वहां मौजूद सभी लोगों के कदम चूम चुके थें। चुकि लोग अचरज और संकोच में थें, ये बात बाबू साहब भली भांति भांप चुके थें। और लोगोंं का संकोच दूर करते हुए बोले…..अरे काका पहचाना नहीं हम ही तो हैं, अरे वही आपका बिटवा जिसे आप लोगों ने अपना आशिर्वाद देकर विधायक बनाया था। देखिये हमने आपके गांव में कितना काम कराया है। स्कूल में बच्चों का खाना समय पर दिलवाते हैं, और रामू काका आपके टोले(मुहल्ला) में तो सरकारी नल भी नहीं था, हमने उसकी व्यवस्था भी करा दी। जिससे आप और टोले के सभी लोगों को साफ-सुथरा पानी पीने को मिल रहा है। हरिया काका आप काहें ऐसे देख रहे हैं, आपके बेटे ने घर के बाहर जो शौचालय बनावाया है ना वो हम ही तो पास कराए थें।इस तरह कुर्ताधारी बाबू  ने वहां मौजूद लगभग सभी लोगों को अपना परिचय दे दिया। इतना लंबा चौड़ा बखान सुनने के बाद उन्हीं मे से एक बुजुर्ग काका ने पूछ लिया कि बिटवा तोहार नाम का हे?


ये सवाल सुनकर बाबू साहब  थोड़ा शर्मा भी गए फिर बनावटी मुस्कान में बोले…अरे हम विधायक ओमप्रकाश जी हैं (काल्पनिक नाम)। बात को आगे बढ़ाते हुए बाबू साहब बोले वो सब छोड़ए आप सबके यहां का का परेशानी है बताईये। चलिए चलते-चलते बात करते हैं इससे घर का रास्ता भी नियरा जाएगा औऱ बातें भी हो जाएगी और घर बैठकर अपने भऊजी और भतीजों से भी मिल लुंगा।  उसके बाद कुछ लोग जो खेत की तरफ जा रहे थें उधर को चल दिए और जो घर की तरफ जा रहे थें उनके साथ बाबू साहब गांव की ओर रुख कर लिए। कदम के साथ बातचीत का सिलसिला भी शुरु हो  गया। बाबू साहब नब्ज टटोलते हुए बोले काका आपके घर की हालत वाकई खराब है। एक एकेला बेचारा रमुआ कमाने वाला है और घर में बीबी बच्चों का खर्चा बच्चों की पढ़ाई भी करनी पड़ती है। बहुत परेशानी है आपको है ना। और हां आपके पेंशन का क्या हुआ अब मिलता है कि नाही हमने तो बनवा दिया था। सोचा था कि कम से कम इससे आपके घर का कुछ तो खर्चा चलेगा। काका कुछ बोलते उससे पहले ही बाबू साहब बोल गए …कट गया ना! ये जरुर उस तेजप्रताप का काम होगा, जो हमारे विरोध में चुनाव लड़ रहा है। वोट खातिर कटवा दिया होगा आपका पेंशन ताकि इसी बहाने हमारी बुराई कर लेगा और आपका वोट भी मांग लेगा।

लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे काका हमे तुम गरीबों की बहुत चिंता है। हम तुम गरीबों की संतान हैं और हमे हमेशा तुम लोगों की ही चिंता सताती रहती है। रात में भी हम अपनी मेहरारू(पत्नि) से तुम लोगों के भविष्य औऱ भलाई की बातें करते रहते हैं। अपने परिवार के बारे में सोचने का तो हमे वक्त ही नहीं मिलता है। देखो होत सवेरे तुम्हारी समस्या सुनने तुम्हारे बीच चले आए। ये चाय भी तो हम तुम्हारे यहां ही पी रहे हैं, घर चाय वाय नहीं पी। अच्छा काका हमारी भऊजी को कोई परेशानी वानी तो नाही है न? औऱ भतीजों की पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है कापी किताब तो सब है न? काका भी इतनी देर से बोलने का मौका तलाश रहे थें। अब मौका मिला तो बोलें…हा बिटवा सब ठी है। तोहरी भऊजी भी ठीक हैं और लइकन की पढ़ाइ लिखाई भी ठीक चल रही है। आपन बताओ एतना दिनों बाद इधर कैसे आ गए?  सब ठीक-ठाक तो है?

बाबू साहब बोले सब ठीक है काका.. वो क्या है ना अगले महीने चुनाव है, तो आप लोगों का आशिर्वाद लेने आया था। पिछली बार की तरह हमारे सर अपना हाथ रखकर आशिर्वाद दीजिएगा। ताकि इस बार भी हमें आपकी सेवा करने का मौका मिले। लगभग जबरदस्ती काका से हामी भराते हुए बाबू साहब बोले काका दोगे ना हमें अपना आशिर्वाद जिताओगे ना इस बार भी हमें। अपने इस बेटे को इस बार भी विधायक बनाओगे ना? काका ने कुछ बोला तो नहीं बस मुंडी हिलाकर हामी भर दी। बाबू साहब फिरसे काका के पैर छुए औऱ भाभी जी को बाहर से नमस्ते कर चल दिए…..अगले झोपड़ी की ओर……..

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh