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अगले महीने घर जाने का टिकट कराया है। एक साल हो गए गांव के उन गलियों को देख, खेत खलिहान और उन पगडंडियों पर साइकल उतरे साल गुजर गए। दिन गुजरने के साथ-साथ मन में उमंग उठने लगा है कि चलो कुछ दिनों बाद शहरे के हांफती जिंदगी से दूर गांव की खुली हवाओंं में सांस लेंंगे। यार-दोस्तों के साथ उस पुल पर बैठ गप्पे लड़ाएंगे। लेकिन आए दिन हो रहे ट्रेन दुर्घटानओं को देखकर कभी-कभी मन मायूस भी हो जाता है। डर लगता है कहीं हमारे सपने भी उन तमाम लोगों की तरह एक टक्कर में पटरी से कहीं दूर ना फिसल जाएं। और मैं भी किसी मलबे के नीचे दबे ये सोचता रहूं कि भगवान! मेरी जिंदगी बख्स दे। कुछ दिन जिंदगी और दे दे ताकी एक बार घर वालों से मिल सकूं। खैर ऐसे खयाल जब भी मन में आते हैं, तो खुद को ये कह कर समझा लेते हैं कि नहीं हमेशा ऐसा थोड़े ही होता रहेगा। सिस्टम बदलेगा रेलवे तरक्की करेगी और फिर कोई दुर्घटना नहीं होगी। इस दुर्घटना की जांच की जाएगी जो कमी होगी उसे ठीक कर दिया जाएगा, फिर आम जन सकुशल ट्रेन यात्रा कर पाएंगे और अपनों से मिल पाएंगे।
हम खुद को समझाते बुझाते ही है कि कोई नया रेल हादसा हो जाता है। औऱ एक बार फिर लोगों की वो चीख-पुकार, किसी का करुण क्रंदन टीवी पर दिखने लगता है। अखबार के पन्ने मौत की तस्वीरों से भरी मिल जाती है। और फिर से वही सवाल एक बार फिर डर और सताने लगता है। देखा जाए तो पिछले कुछ महीनों में दो-तीन बड़ी रेल दुर्घटनाए हो चुकि हैं। पिछले साल नवंबर में कानपुर के पास एक बड़ा रेल हादसा हुआ ता जिसमें 150 से भी अधिक लोगों की मौत हो गई थी। उस हादसे के अगले ही दिन उसी रूट पर टूटी पटरी से ट्रेन गुजर गई , गनीमत ये रही कि वो ट्रेन किसी दुर्घटना की शिकार नहीं हुई। उसके बाद भी कई हादसे हुए कहीं मालगाड़ी पटरी से उतरी कही इंजन बोगी छोड़ आगे बढ़ गया। अभी कल की ही तो बात है,आंद्रप्रदेश में भी एक ट्रेन के 8 डिब्बे पटरी से उतर गए। इस हादसे में करीब 45 से ज्यादा लोग अपनी जिंदगी खो दिए। हर बार की तरह रेलवे की नींद खुली आनफानन में राहत औऱ बचाव कार्य किया गया। औऱ आलाकमान के तरफ से एक बार फिर वही जवाब आया कि दुर्घटना की जांच की जाएगी, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
ऐसा कबतक चलेगा। कबतक हम भारतीयों के कान ट्रेन के टक्कर और उसके बाद अधिकारियों की एक ही बात सुनते रहेंगे कि दुर्घटना की जांच की जाएगी, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। कब बदलेगा सिस्टम कब? कब इंसान ट्रेन में बे झिझक चढ़ने के लिए खुद को तैयार कर पाएगा? कब वो दिन आएगा जब ट्रेन मौत का मुआवजा लेकर नहीं, खुशियों की मधुर सीटी बजाती आएगी? कब वो दिन आएगा हम जैसा इंसान ट्रेन में चढ़ने से पहले ये सोचेगा चलो कल तो अपने गांव के मिट्टी की सौंधी खुश्बू आएगी।………छुकछुक करती रेलगाड़ी आखिर कब हमें घर बेखौफ पहुंचाएगी???
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