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यूं घिनौनी राजनीति मत खेलो…

मेरी बात
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politiscवैसे तो हर इंसान का किसी पार्टी विशेष के प्रति विशेष झुकाव होता है। लेकिन आमतौर पर ये झुकाव तबतक नजर नहीं आता, जबतक कहीं राजनीति की बात ना हो । चुनाव के दिनों में तो  अपने पार्टी की तरफ लोगों का झुकाव देखने लायक होता है। वैसे  पार्टी विशेष कार्यकर्ता और नेता गण चुनाव के दिनों में कुछ ज्यादा ही सक्रीय हो जाते हैं। ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन ये झुकाव पार्टी के प्रति ये प्रेम इतना भी नहीं होना चाहिए कि आपको पार्टी के अलावा कुछ नजर ही ना आए। अगर आप अपने पार्टी का प्रचार कर रहे हैं,तो आपको इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि आपके प्रचार से किसी जन समुदाय की भावनाए आहत ना हो। वैसे भी आप जनता के सेवक हैं और सेवा से पहले उनकी भावनाओं का खयाल रखना भी आपका कर्तव्य है।

देखा जाए तो सभी पार्टियां एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। पार्टी कार्यकर्ताओं के गर्मजोशी के तो क्या कहने। ये तो अपने पार्टी प्रमुख को भगवान भी बना देते हैं। भगवान बनाने का सिलिला ये है कि कोई अपने आका को कृष्ण बना रहा है, तो किसी के आका प्रभू श्री राम बन रावण का नाश कर रहे हैं। काशी का ही एक वाक्य ले लीजिए वहां के एक सपा कार्यकर्ता सपा-कांग्रेस गठबंधन से कुछ इस कदर खुश नजर आएं कि राहुल को कृषण तो अखिलेश को अर्जुन बना महाभारत लड़ने लगे। वैसे अपना भगवान बनाने में बीजेपी वाले भी कुछ कम नहीं है, इनके एक कार्यकर्ता ने मोदी जी को बकायदा श्री राम बनाया हुआ है और वो रावण पर निशाना साधे भी दिख रहे हैं। रावण के उस दर सिरों में सूबे के अमूमन सभी नेताओं के सिर है। इस तरह सभी पार्टियां एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगी है। और इस लड़ाई में ये लोग अपना वास्तविक काम भूल जा रहे हैं। या यूं कहें कि भूला दे रहे हैं। वैसे सवाल ये है कि पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा पार्टी प्रमुख को पोस्टरों में यूं भगवान बनाना कहां तक उचित है?

कहने को तो सभी पार्टियां ये कहती हैं कि हम जनता के सेवक हैं। कुछ  पार्टियां तो खुद को  किसी खास कौम का तथाकथित हितैसी भी बताती हैं। लेकिन असल में इन्हें लोगों के भावनाओं की कद्र भी नहीं है। खुद को जनता का सेवक बताने वाले इन लोगों को अपना काम तब याद आता है जब चुनाव आता है। उससे पहले तो दिया लेकर ढ़ूंढ़ने पर भी ये नजर नहीं आते। अब जिन्हें ये तक नहीं पता कि पोस्टर में क्या लिखवाना या कौन सी तस्वीर लगाना उचित है, उन्हें जनता के लिए क्या भला क्या बुरा इस बात की क्या जानकारी होगी। शायद जनता के भलाई-बुराई से इनका कुछ लेना देना िभी नहीं है। इनके लिए तो जनता मुर्ख है, बस शराब, साड़ी, लैपटॉप, पेंशन जैसी चीजों का लालच दे दो जनता सब भूल जाएगी। इसके बाद ना तो किसी की भावनाएं बचती है और ना ही कोई सवाल उठाता है।

असल में  आज के नेता गण उस दीमग की तरह हो गए है। रहता तो लकड़ी के अंदर  है लेकिन हर पल उसी को खाने में लगा रहता है। वैसे ही ये लोग हैं, जो जनता इन्हें सरताज बनाती है। इनके लिए कुर्सी की व्यवस्था करती है। कुर्सी मिलने के बाद उन्हें लात मार कर किनारे टरका देते हैं। खुद को जनता का हितैसी बताने वाले लोगों सच में कभी जनता की भावनाओं को समझो। एक के फायदे के लिए दूसरे का गला मत घोटो। अगर राजनीति कर रहे है, तो एक अच्छी और स्वच्छ राजनीति करो। यूं धर्म, जाति और भगवान के नाम पर गंदगी मत फैलाओ। ये लोग तुम्हारे अपने हैं, इनकी भावनाओं को समझो, बार-बार गरीब, अल्प संख्यक, दलित आदि कह कह कर इन्हें और मत भरमाओ। ये देश तुम्हार घर है, इस घर को यूं कुर्सी के लिए मत जलाओ।…..सेवक हो एक अच्छा सेवक बन के दिखाओ।

जय हिन्द!!!

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