Menu
blogid : 15237 postid : 1325153

सुना है इंसानी बस्ती में अंजान सिसकियां…

मेरी बात
मेरी बात
  • 38 Posts
  • 15 Comments
सुना है इंसानी बस्ती में अंजान सिसकियां…
देखा है सर्द रातों में छप्पर में टिमटिमाती वो बत्तियां…
सो जाते हैं जब लोग देर रात बुझाकर बत्तियां…
उस वक्त भी देखा है टकटकी लगाए देखती कुछ अखियां…
देखा है किनारों पर मेरे कुछ पत्तलों पर पड़े वो जूठे भोजन…
देखा है उन जूठनों को निवाला बनाते वो जन….
सुना है उन मासूमों की परिजनों से देर रात की फुसफुसाहट…
महसूस किया है परिजनों की डांट की वो अनचाही कड़वाहट….
हर रोज़ देखा है पहियों के साथ-साथ मेरे ऊपर मरती इंसानियत…

tears

सुना है इंसानी बस्ती में अंजान सिसकियां…

देखा है सर्द रातों में छप्पर में टिमटिमाती वो बत्तियां…

सो जाते हैं जब लोग देर रात बुझाकर बत्तियां…

देर रात  देखा है टकटकी लगाए देखती कुछ अखियां…

देखा है किनारों पर मेरे कुछ पत्तलों पर पड़े वो जूठे भोजन…

देखा है उन जूठनों को निवाला बनाते वो जन….

सुना है उन मासूमों की परिजनों से देर रात की फुसफुसाहट…

महसूस किया है परिजनों की डांट की वो अनचाही कड़वाहट….

हर रोज़ देखा है पहियों के साथ-साथ मेरे ऊपर मरती इंसानियत…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh