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“अबे ओय….सुन ज्यादा तंग करेगा ना सीधा पुलिस से शिकायत कर दुंगा/दुंगी”…. ये शब्द अमूमन हर भारतीय के मुख से निकल जाता है, जब कोई उसे बहुत परेशान करता है। भले ही हम पुलिस को निक्कमा समझते हों, लेकिन संकट की घड़ी में यदि किसी का खयाल आता है तो वो पुलिस ही होती है। पुलिस के नाम से ही कईयों के पसीन छूट जाते हैं, तो कुछ को खाकी इतनी एलर्जी होती है कि पुलिस का नाम सुनते ही उनकी जुबान से गालियां निकल जाती है। लेकिन पुलिस को गाली देने वाला शख्स भी कहीं ना कहीं पुलिस को अपना संरक्षक जरुर मानता है। देर रात यदि कोई हमारा पीछा कर रहा हो, तो दूर चौकी या किसी पुलिसकर्मी को खड़ा देख दिल से हर डर निकल जाता है और ऐसा लगता है कि अब हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
लेकिन पुलिस के प्रति वो विश्वास, आत्मबल और खाकी का जो एक डर मन में रहता है। ये सब उस वक्त कोसो दूर चला जता है, जब कोई दंगा होता है। उस वक्त जो पत्थर हाथ में उठते हैं, वो सीधा पुलिसकर्मियों की ओर ही जाते हैं। तब हम ये भूल जाते हैं कि जिस खाकी को पत्थर मारकर लहुलूहान करते हैं, संकट के समय उसी खाकी को देखकर हम खुद को महफूज़ महसूस करते हैं। आज अलीगढ़ में हुए सांप्रदायिक तनाव के बीच भी लोगों के हाथो में थें, उनमें से कुछ पत्थर दूसरे पक्ष पर जा रहे थें, तो कुछ पुलिसकर्मियों को मारे जा रहे थें। पूरी सड़क ईंट के टुकड़ों से भरी पड़ी थी। इससे पहले सहारनपुर में हुए दंगे में भी कुछ ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली थी। वहां दो गुटो के बीच खाकी पिस रही थी।
सवाल ये है कि इस दौरान हम अक्सर ये क्यों भूल जाते हैं कि पुलिसवाले भी एक इंसान है। उनका भी एक परिवार है, जैसे हर शाम हमें अपने पिता, भाई और बेटे के घर आने का इंतज़ार रहता है, वैसे ही उनके घर भी उनका कोई इंतज़ार कर रहा होगा। शायद उस दरमियान दूसरे पक्ष से बड़ा दुश्मन हमे पुलिसकर्मी लगते हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि वो हमे एक दूसरे से लड़ने से रोकते हैं। बीच में हस्तक्षेप कर भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश करते है। ताकि दो गुटों का झगड़ा शांत हो सके। उस दौरान पुलिस की एक लाठी शायद हम में से किसी एक को भी लग जाती है । लेकिन उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर तो हम ही करते हैं। ऐसा तो नहीं है कि उन्हें हमसे ज्यादती दुश्मनी है और वो दंगो के बीच अपनी वो दुश्मनी निकाल रहे हैं।
पुलिस को लेकर आपके मन में भले ही कितनी भी नकारात्मकता भरी हो लेकिन मुसिबत के समय आपको भी याद पुलिस की ही आती होगी। कभी फर्सत मिले तो एक पुलिसवाले की मेहनत और लगन के बारे में स्वच्छता से सोचिएगा। तब शायद आपको ये खाकी और भी प्यारी लगने लगेगी। हो सके तो उस खाकी की थोड़ी हिफाजत करने के बारे में आप भी सोचिएगा जो खाकी दिन रात आपके हिफाजत के लिए तैयार रहती है।
जय हिन्द!!
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