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सुन रे कजरी इस सावन एक बार तू आजा…

मेरी बात
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कजरी

सुन रे कजरी इस सावन एक बार तू आजा,
कितनी निर्जीव पड़ी हैं, ये गलियां तेरे बिन,
अपनी गूंज से इन्हें फिर से सजीव बना जा।
देख कैसे चुपचाप खड़ा है, वो झूला तेरे बिन,
स्वर लहरी की पेग लगा के एक बार तो झुला जा।
उमड़-घुमड़ के ढ़ूंढ़ रहा है बदरा तुझे,
इस बदरा को आके थोड़ा शांत करा जा।
खोज रही है धरती की राह बारिश की बूंदें,
इन बूंदों को तनिक धरती की राह तो दिखा जा,
सुन रे कजरी इस सावन एक बार तू आजा।
क्या भूल गई है, गांव की इन पगडंडियों को तू,
या कुछ कह दिया है नई-नवेली दुल्हनियां ने तुझे।
क्या हुआ जो तेरी सखियां तुझे भूल गईं,
अम्मा-काकी का हाल-चाल लेने के बहाने तो आजा।
लोग कहते हैं बड़ी मिलनसार है तू,
अब यूं बेदर्दी का परिचय न दे जा,
सुन रे कजरी इस सावन एक बार तो आजा,
सुन रे कजरी एक बार तो आजा।

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